Shaheed Bhagat Singh Biography / शहीद भगत सिंह की जीवनी

Shaheed Bhagat Singh/ भगत सिंह भारत के महान क्रांतिकारी थे जिन्होंने अंग्रेज़ों के खिलाफ आज़ादी की लड़ाई में साहस और बलिदान का अद्वितीय उदाहरण पेश किया। वे “इंकलाब ज़िंदाबाद” जैसे नारों के जनक थे और युवाओं के प्रेरणास्त्रोत बने। मात्र 23 वर्ष की आयु में उन्होंने देश के लिए प्राण न्यौछावर कर दिए। उनका जीवन आज भी देशभक्ति का प्रतीक है।

🧾 सरदार भगत सिंह – मूल जानकारी

विवरण जानकारी
पूरा नाम सरदार भगत सिंह / Shaheed Bhagat Singh
जन्म तिथि 27 सितम्बर 1907
जन्म स्थान बंगा, लायलपुर जिला, पंजाब (अब पाकिस्तान में)
माता-पिता पिता: किशन सिंह, माता: विद्यावती
मृत्यु तिथि 23 मार्च 1931
मृत्यु स्थान लाहौर सेंट्रल जेल, ब्रिटिश इंडिया
आयु मृत्यु के समय 23 वर्ष
शिक्षा नेशनल कॉलेज, लाहौर
विचारधारा समाजवाद, क्रांतिकारी राष्ट्रवाद
प्रमुख संगठन हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA)
प्रसिद्ध नारे “इंकलाब ज़िंदाबाद”, “साम्राज्यवाद का नाश हो”

भगत सिंह का जन्म 27 सितम्बर 1907 को एक देशभक्त सिख परिवार में हुआ था। जब वे पैदा हुए, तब उनके पिता और चाचा पहले से ही ब्रिटिश राज के खिलाफ आंदोलन में जेल में थे। उनके घर का माहौल पूरी तरह से स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ा हुआ था। बचपन से ही उन्होंने भारत की आज़ादी के सपने देखने शुरू कर दिए थे। महज 12 साल की उम्र में उन्होंने जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद वह जगह जाकर उसकी मिट्टी उठाई थी और कसम खाई थी कि जब तक देश को आज़ादी नहीं मिलती, वे चैन से नहीं बैठेंगे।

युवावस्था में भगत सिंह गांधी जी के असहयोग आंदोलन से काफी प्रभावित हुए और उसमें भाग भी लिया। लेकिन जब यह आंदोलन चौरी-चौरा की घटना के बाद वापस ले लिया गया, तो भगत सिंह निराश हुए और उन्होंने अहिंसा की बजाय सशस्त्र क्रांति को अपना मार्ग चुना। उन्होंने कई क्रांतिकारी संगठनों से जुड़कर ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ एक स्पष्ट और संगठित विद्रोह की योजना बनाई। इसी दौरान वे हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) से जुड़े।

Shaheed Bhagat Singh

भगत सिंह का मानना था कि सिर्फ ब्रिटिश सत्ता को हटाना काफी नहीं, बल्कि भारत को एक सामाजिक और आर्थिक न्याय पर आधारित देश बनाना जरूरी है। वे मार्क्सवादी विचारों से प्रभावित थे और उन्होंने समाजवाद को भारत के भविष्य के रूप में देखा। उन्होंने “क्रांति” को केवल हथियारों से नहीं, बल्कि सोच और समाज को बदलने का एक माध्यम माना। उन्होंने अपने लेखों और भाषणों में युवाओं को जागरूक किया और उन्हें गुलामी के खिलाफ उठ खड़े होने के लिए प्रेरित किया।

सन् 1928 में जब साइमन कमीशन भारत आया, तो उसका पूरे देश में विरोध हुआ। इसी समय लाला लाजपत राय पर ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स ने लाठीचार्ज किया, जिससे उनकी मृत्यु हो गई। इसका बदला लेने के लिए भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ने सॉन्डर्स की हत्या कर दी। इसके बाद भगत सिंह ने ब्रिटिश संसद (सेंट्रल असेंबली) में बम फेंका, जिसमें किसी की जान नहीं गई, क्योंकि उनका उद्देश्य जान लेना नहीं, जागरूकता पैदा करना था। उन्होंने गिरफ्तारी दी और अपने विचारों को जनता तक पहुंचाया।

जेल में रहते हुए भगत सिंह ने लंबा भूख हड़ताल भी की, जिससे उन्होंने जेल में कैदियों के साथ हो रहे भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई। अंततः उन्हें सॉन्डर्स की हत्या का दोषी मानते हुए 23 मार्च 1931 को राजगुरु और सुखदेव के साथ फांसी दे दी गई। उनकी शहादत ने देशभर में युवाओं को जोश और क्रांति की राह पर ला खड़ा किया। वे सिर्फ एक क्रांतिकारी नहीं थे, बल्कि विचारों के योद्धा थे, जिनकी सोच आज भी प्रेरणा देती है।

आज भी भगत सिंह का नाम भारत में निडरता, बलिदान और आदर्शवाद का प्रतीक माना जाता है। उन्होंने बहुत कम उम्र में जो साहस, विचारशीलता और समर्पण दिखाया, वह उन्हें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे महान नायकों में शामिल करता है। उनका जीवन एक जीवंत प्रेरणा है कि कैसे एक व्यक्ति, अपने दृढ़ संकल्प और सिद्धांतों के साथ, इतिहास की दिशा बदल सकता है।

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